देश के 50 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य बीमा देने के साथ सरकार एक और महत्वकांक्षी योजना लेकर आ रही है। जल्द ही राज्य सरकारों के साथ मिलकर देश में दुर्लभ बीमारियों के खिलाफ अभियान शुरू होने वाला है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय करीब 300 तरह की दुर्लभ बीमारियों को लेकर एक राष्टीय पॉलिसी बनाने में जुटा है। उम्मीद लगाई जा रही है कि इस साल के अंत तक इस पॉलिसी को लागू कर दिया जाएगा, जिसमें फिजिशियन डॉक्टरों को भी इन बीमारियों के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। केंद्र सरकार ने बनाई योजना, राज्य सरकारों के साथ मिलकर करेंगे काम ,फिजिशियन डॉक्टरों को भी दुर्लभ बीमारियों का दिया जाएगा प्रशिक्षण आयुष्मान भारत के तहत डेढ़ लाख खुलने जा रहे हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में यह सुविधा भी लोगों को उपलब्ध होगी। मंत्रालय जल्द ही इस मसौदे को कैबिनेट तक पहुंचाने वाला है। दरअसल, दुनियाभर में लगभग 7 हजार दुर्लभ बीमारियां है, जिनमें से भारत में करीब 300 तरह की दुर्लभ बीमारियां पाई जाती हैं। इनका उपचार भी करीब 8 से 20 लाख रुपये तक होता है। अभी सरकारी अस्पतालों में सुविधा न होने की वजह से मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ता है। इन्हीं में से एक लायसोसोमल स्टोरेज डिस्ऑर्डर (एलएसडी) दुर्लभ बीमारियां है, जिनकी पहचान आसानी से नहीं हो पाती। एलएसडी ग्रुप की बीमारियों को आयुष्मान भारत में मिलेगा तवज्जो इस साल लागू हो जाएगा मास्टर प्लान
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि आमतौर पर 300 तरह की दुर्लभ बीमारियां पाई जाती हैं। जिनके मरीजों की संख्या करीब दो से तीन लाख है। लेकिन इनमें सबसे ज्यादा एलएसडी बीमारियों के मरीज हैं। इसलिए इस पर ज्यादा फोकस है। इसमें लगभग 50 दुर्लभ विकार आते हैं जिसमें मुख्य रूप से चार तरह की बीमारियां गौचर, एमपीएस, फ्रैबी और पोम्पे के मरीज ज्यादा हैं। इस बीमारी में एंजाइम की कमी के कारण कोशिकाएं कई तरह के फैट व कार्बोहाइड्रेट को तोडने में असक्षम हो जाती है। इससे शरीर में विषाक्त पदार्थ बनने लगते है। केंद्र सरकार ने बनाई योजना, राज्य सरकारों के साथ मिलकर करेंगे काम 200 करोड़ से ज्यादा खर्च करेगी सरकार सूत्रों का कहना है कि स्वास्थ्य मंत्रालय की इस पॉलिसी पर सरकार करीब 200 करोड़ रुपये खर्च करने वाली है। बाकी करीब 125 करोड़ रुपये राज्य सरकारों को देना है। इसके अलावा पॉलिसी में दुर्लभ बीमारियों से जुड़े सभी प्रमुख पहलुओं को कवर किया है जिसमें बीमारी की पहचान करने वाले ज्यादा से ज्यादा केंद्रों को बनाना, इलाज के लिए केंद्र व राज्य सरकार के द्वारा फंड प्रदान करना और वेब से जुड़ी ऐप्लिकेशन बनाना शामिल है। मुश्किल हैं बीमारियों की पहचान एम्स के बालरोग विशेषज्ञ विभाग के जेनेटिक्स यूनिट की डॉ. मधुलिका काबरा का कहना है कि अगर समय पर एलएसडी की पहचान हो जाए तो इसकी कुछ बीमारियों जैसे कि एमपीएस, गौचर, पोम्पे, फ्रैबी का इलाज मुमकिन है। इसलिए जरूरी है कि फिजिशियन को भी दुर्लभ बीमारियों की जानकारी दी जाए क्योंकि रोगी सबसे पहले उन्हीं के पास सलाह लेने जाते है। इन बीमारियों का इलाज इंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी (ईआरटी) से किया जा सकता है। पॉलिसी के तहत देश के हर जिले में ईआरटी की सुविधा दी जाएगी।
दिल्ली के मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज की डॉ. सीमा कपूर का कहना है कि कई बार एलएसडी के लक्षणों की पहचान में सात से दस साल तक लग जाते हैं। एलएसडी के बारे में मरीजों को जेनेटिक काउंसिलिंग न देना, जिनकी पारिवारिक हिस्ट्री में दुर्लभ बीमारियां हो, उस परिवार की गर्भवती महिलाओं की भ्रूण जांच, नवजात शिशु की स्क्रीनिंग की जानकारी न होने शामिल है। |