नयी दिल्ली : धनतेरस के त्योहार से ही दिवाली पर्व का शुभारंभ हो जाता है। पौराणिक कथाओ के अनुसार इस दिन समुद्र मंथन से धन्वंतरि भगवान की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए धनतेरस के दिन धन्वंतरि जी की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है।
इस बार धनतेरस का त्योहार 29 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन दीप दान करने की भी विशेष परंपरा है क्योंकि ऐसा करने से व्यक्ति को उसके सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। धनतेरस के दिन से ही दीप जलाना भी प्रारंभ हो जाता है और जो अगले 5 दिनों तक जलाया जाता है। लेकिन धनतेरस के दिन 13 दीपों को जलाने का खास महत्व होता है। आइए इसके बारे में जानते हैं।
धनतेरस के दिन 13 दीपक जलाने का महत्व
घर के इन कोनों में रखें यह 13 दियें मिलेगी सुख, शांति और सफलता
पहला दीया - घर में पहला दीया दक्षिण कोने में जलाएं जो कि यमराज की दिशा होती है। ऐसा करने से घर पर आकाल मृत्यु का साया नहीं पड़ता है।
दूसरा दीया -घी का दीया जलाकर पूजा घर में ईशान दिशा की ओर देवताओं के सामने रखें, जिसमें आप एक केसर का धागा भी डाल सकते हैं। इससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर को समृद्ध आती है।
तीसरा दीया -अपने परिवार को बुरी नज़र से बचाने के लिए घर के मुख्य द्वार पर दीया जरूर रखें। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती हैं।
चौथा दीया - घर में चौथा दीया तुलसी जी के पास जलाएं जिससे घर का वातावरण पवित्र और खुशहाल रहेगा।
पांचवा दीया - घर की छत को साफ-सुथरा कर वहां पर पांचवा दीया रखने से घर सुरक्षित रहता है।
छठा दीया -सरसों के तेल में जलाये हुए दीये को पीपल के पेड़ के नीचे रखें। ऐसा कहते है की पीपल के पेड़ में माता लक्ष्मी का वास होता है और ऐसा करने मात्र से ही व्यक्ति को धन की हानि नहीं होती हैं।
सातवां दीया -धनतेरस के दिन सातवां दीया पड़ोस के किसी भी मंदिर में जला दें।
आठवां दीया -घर में आठवां दीया कूड़े के पास जलाना चाहिए।
नौवां दीया -घर के वॉशरूम के बाहर में दीप जलाने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है।
दसवां दीया - धनतेरस के दिन दसवां दीया खिड़कियों पर जलाएं।
ग्यारवां दीया -दीये को घर की रसोई में रखने से अन्न और भुखमरी की समस्या नही होती है।
बारहवां दीया - धनतेरस की रात को बेल के वृक्ष के नीचे दीप रखने से घर की संपत्ति में वृद्धि होती हैं।
तेरहवां दीया - अंतिम दीये को अपने घर की तरफ आने वाले चौराहे पर जलाएं।
दीप जलाते समय करें इस मंत्र का जाप
1. ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं कुबेराय नम
2. ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा॥
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