सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अलग धार्मिक पहचान किसी व्यक्ति पर हमला करने या उसकी हत्या करने का लाइसेंस नहीं दे देती है। शीर्ष अदालत ने सभी अदालतों से कहा कि वे ऐसा कोई आदेश पारित न करें जिसमें किसी समुदाय के समर्थन या विरोध का स्वर दिखता हो।
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी बांबे हाईकोर्ट के उस आदेश पर की है जिसमें एक व्यक्ति की नृशंस हत्या के मामले में हिंदू राष्ट्र सेना के तीन लोगों को जमानत देते हुए यह तर्क दिया गया था कि पीड़ित का दोष सिर्फ यह था कि वह दूसरे धर्म का था। हाईकोर्ट के इस तर्क पर कड़ी आपत्ति जताते हुए शीर्ष अदालत ने तीनों आरोपियों की जमानत रद्द कर दी है।
जून, 2014 में पुणे में मोहसिन शेख नामक शख्स की हत्या हिंदू राष्ट्र सेना के लोगों ने कर दी थी। हिंदू राष्ट्र सेना के लोग एक बैठक में हिस्सा लेकर आ रहे थे और रास्ते में उन्हें मोहसिन मिल गयासमूह के लोगों ने हॉकी स्टिक से मोहसिन और उसके एक दोस्त पर हमला कर दिया। बाद में मोहिसन की मौत हो गई। हाईकोर्ट ने तीन आरोपियों को जमानत दे दी थी। हाईकोर्ट के इस फैसले को मोहसिन के एक रिश्तेदार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। शीर्ष अदालत ने तीनों की जमानत खारिज करते हुए समर्पण करने के लिए कहा है।
न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने कहा कि सभी अदालतों को हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि भारत में विभिन्न समुदाय और मान्यता वाले लोग रहते हैं। ऐसे में अदालतों का यह कर्तव्य है कि वह विभिन्न समुदायों या समूहों के अधिकारों पर निष्पक्ष तरीके से निर्णय ले।ऐसी कोई टिप्पणी नहीं करें जो किसी समुदाय के खिलाफ हो या समर्थन में। साथ ही शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट से आरोपियों की जमानत याचिकाओं की नए सिरे से जांच करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट को छह हफ्ते में जमानत याचिकाओं का निपटारा करने के लिए कहा गया है।शीर्ष अदालत ने कहा कि संभव है कि हाईकोर्ट जज यह कहना चाहते हों कि पीड़ित के खिलाफ आरोपियों की निजी मंशा नहीं थी लेकिन हाईकोर्ट की टिप्पणी संप्रदायों के बीच कटुता पैदा करने वाली है। पीठ ने कहा कि यह समझ से परे हैं कि हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी क्यों की। पीठ ने कहा कि यह भी संभव है कि जज का इरादा किसी खास समुदाय का समर्थन या विरोध करना न हो लेकिन जिन शब्दों का इस्तेमाल किया गया कि वह दोषपूर्ण है।
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