कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतर्दशी नरक चतुर्दशी कहा जाता है। इस दिन यमुना या किसी पवित्र नदी में स्नान का काफी महत्व है। मान्यता है कि नरक चतुर्दर्शी के दिन यमुना में स्नान करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नहीं करना पड़ता। स्नानोपरांत दक्षिणाभिमुख हो निम्न मंत्रों से पितरों को तर्पण करना चाहिए —
ॐ यमाय नम:। ॐ धर्मराजाय नम:। ॐ मृत्येव नमः। ॐ अन्तकाय नम:। ॐ वैवस्वताय नमः। ॐ कालाय नम:। ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः। ॐ औदुम्बराय नमः। ॐ दध्नाय नमः। ॐ नीलाय नमः। ॐ परमेष्टिने नमः। ॐ वृकोदराय नमः। ॐ चित्राय नमः। ॐ चित्रगुप्ताय नमः।
इन मंत्रों का उच्चारण करके दीपदान करना चाहिए। दीप जलाकर भगवान विष्णु के समक्ष ये प्रार्थना करें कि मेरे सभी पाप नष्ट हो जाएं और नरक से हमारी रक्षा हो। यमराज के उद्देश्य से त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या तीनों दिन दिए जलाने चाहिए। इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और नरक का सामना नहीं करना पड़ता।
नरक चतुर्दशी की कथा
कार्तिक पक्ष की चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु अपने भक्त राजा बलि की परीक्षा लेने हेतु साधु का रूप रख कर, उनकी यज्ञशाला में पधारे। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु की आवभगत की और उनके आगमन का कारण जाना। तब साधु का वेष धारण किए हुए भगवान विष्णु ने उनसे अपने पगों से नापकर तीन पग भूमि मांगी। तब राजा बलि ने दान स्वरूप तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया। तब साधु रूपी भगवान विष्णु ने अपने दो पगों में ही राजा बलि का सम्पूर्ण राज-पाट नाप लिया। तब तीसरे पग हेतु राजा बलि ने साधु के चरणों में झुक कर स्वयं को समर्पित कर दिया। तब भगवान विष्णु प्रसन्न हो अपने रूप में आये और राजा बलि से वरदान मांगने को कहा। उस समय बलि ने प्रार्थना करते हुए कहा कि जो भी कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक दीपदान करे, उस पर आपकी सदैव कृपा बनी रहे, माता लक्ष्मी का स्थायित्व सदैव उसके घर पर बना रहे तथा उसे कभी नरक का सामना न करना पड़े। तब भगवान विष्णु ने एवमस्तु कहा और तभी से सभी त्रयोदशी से अमावस्या तक दीप प्रज्जवलित करने की परंपरा चली आ रही है।
दीपदान से होता है कल्याण
श्रद्धा अनुसार जो भी व्यक्ति त्रयोदशी से लेकर अमावस्या तक दीप प्रज्जवलित करता है और नरक चतुर्दशी को उपवास करता है भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कृपा सदैव उन पर बनी रहती है।
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