कर्नाटक के चुनाव नतीजों में त्रिशंकु विधानसभा होने की संभावना के मद्देनजर कांग्रेस ने कहा कि वह राज्य में अगली सरकार के गठन में जेडीएस का समर्थन करेगी। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने गुलाम नबी आजाद सहित कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं के साथ एक बैठक के बाद उनकी पार्टी सरकार बनाने में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस का समर्थन करेगी। हालांकि, फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस बाहर से समर्थन देगी, या सरकार में शामिल होगी। सरकार गठन का दावा पेश करने के लिए कांग्रेस और जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी आज शाम राज्यपाल से मुलाकात करने वाले हैं। ऐसे राजनीति हालात में सभी की नजरें अब राज्य के राज्यपाल पर जा टिकी हैं। स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में राज्यपाल की अहम भूमिका हो गई है। देखना दिलचस्प होगा कि वह सरकार बनाने का अवसर किसे देते हैं।
किसी दल को बहुमत नहीं मिलने पर राज्यपाल की भूमिका
ऐसे मामलों में संवैधानिक स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है। संविधान के अनुच्छेद 164 के अनुसार मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा। ऐसे में राज्यपाल अपने विवेक से किसी की भी नियुक्ति कर सकते है। राज्यपाल को ऐसे व्यक्ति में विश्वास करना होता है जिसे सदन में बहुमत मिलने की संभावना है। ऐसे में राज्यपाल अपनी समझ के अनुसार बहुमत हासिल करने के लिए किसी को बुला सकते हैं। जहां तक बात सबसे बड़े दल को न्यौता देने की है तो संविधान में इसका कहीं उल्लेख नहीं है। संविधान में सिर्फ इतना उल्लेख है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेंगे। इस मामले में परंपराएं भी अलग-अलग तरह की रही हैं। सिर्फ बड़े दल को ही न्यौता दिया गया है ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। कभी सबसे बड़े दल को मौका दिया गया है तो कभी सबसे बड़े गठबंधन को मौका दिया गया है। कई बार छोटे दलों को भी मौका दिया गया है। पिछले साल कांग्रेस के गोवा विधानसभा चुनाव में 17 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सरकार बनाने का न्योता दिया था, जो सिर्फ 13 सीटें जीतकर आई है।
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