सोमवार को भारत बंद के दौरान दलितों का गुस्सा और हिंसा के पीछे का तात्कालिक कारण भले ही एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को माना जा रहा है, लेकिन इस हिंसा की पृष्टभूमि सालों से बन रही थी। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एससी-एसटी ऐक्ट पर 20 मार्च को दिए गए अपने फैसले पर स्टे लगाने से साफ इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने सभी पक्षों को इस मसले पर तीन दिन के भीतर जवाब देने का आदेश देते हुए 10 दिन बाद अगली सुनवाई की बात कही है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हमने ऐक्ट को कमजोर नहीं किया है बल्कि गिरफ्तारी और सीआरपीसी के प्रावधान को परिभाषित किया है। शीर्ष अदालत ने तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान को लेकर कहा कि हमारा मकसद निर्दोष लोगों को फंसाने से बचाना है। निर्दोषों के मौलिक अधिकारों की रक्षा होनी चाहिए।एससी-एसटी ऐक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सोमवार को दलित संगठनों ने भारत बंद बुलाया था। इस दौरान 9 लोगों की मौत हो गई थी। यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों में जमकर हिंसा हुई थी।
हिंसा से सरकार भी भौचक
भारत बंद का जैसा पूरे देश में असर हुआ और उसमें हिंसा हुई उससे सरकार भी भौचक है। हिंसा के कारण राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में इंटरनेट सर्विस को बंद करना बड़ा। कई इलाकों में कर्फ्यू लागनी पड़ी। मध्य प्रदेश के मुरैना और ग्वालियर जिले में सेना बुलानी पड़ी थी। दलित संगठनों का जबर्दस्त प्रदर्शन और हिंसा के पीछे केवल सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही एकमात्र कारण नहीं माना जा रहा है। हाल के दिनों में दलितों पर हुए अत्याचार की खबरों ने भी इस आंदोलन में घी का काम किया।
NCRB डेटा के अनुसार पिछले कुछ सालों में दलितों के खिलाफ अत्याचार बढ़े हैं। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो 2016 के अंत तक दलितों पर अत्याचार के 90 फीसदी मामलों में ट्रायल शुरू नहीं हुआ है। दलित संगठनों का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला स्तब्ध करने वाला है क्योंकि इस तरह के मामलों में दोषी साबित होने का आंकड़ा साल दर साल घटा ही है।
कोर्ट के इस फैसले के बाद दलित संगठनों और नेताओं ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था। आपको बता दें कि इस मुद्दे को लेकर केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान, थावरचंद गहलोत सहित कई सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी।
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