सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए देशभर में एससी/एसटी एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को स्वीकार करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। जिसके तहत कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है और जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी एसएसपी की इजाजत से हो सकेगी। हालांकि, कोर्ट ने यह साफ किया गया है कि गिरफ्तारी की इजाजत लेने के लिए उसकी वजहों को रिकॉर्ड पर रखना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने ऐसे मामलों में नए सिरे से गाइडलाइंस जारी की हैं। और ये नई व्यवस्था देशभर में आज से ही लागू हो जाएगी।
ऐसे मामलों में निर्दोष लोगों को बचाने के लिए कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज नहीं किया जाएगा। सबसे पहले शिकायत की जांच डीएसपी लेवल के पुलिस अफसर द्वारा शुरुआती जांच की जाएगी। यह जांच समयबद्ध होनी चाहिए। जांच किसी भी सूरत में 7 दिन से ज्यादा समय तक न हो। डीएसपी शुरुआती जांच कर नतीजा निकालेंगे कि शिकायत के मुताबिक क्या कोई मामला बनता है या फिर तरीके से झूठे आरोप लगाकर फंसाया जा रहा है?
ऐसे मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है और जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी एसएसपी की इजाजत से हो सकेगी। हालांकि, कोर्ट ने यह साफ किया गया है कि गिरफ्तारी की इजाजत लेने के लिए उसकी वजहों को रिकॉर्ड पर रखना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिनियम के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल की बात को मानते हुए कहा कि इस मामले में सरकारी कर्मचारी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं।
एससी/एसटी एक्ट के तहत जातिसूचक शब्द इस्तेमाल करने के आरोपी को जब मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाए तो उस वक्त उन्हें आरोपी की हिरासत बढ़ाने का फैसला लेने से पहले गिरफ्तारी की वजहों की समीक्षा करनी चाहिए।
इ कोर्ट ने यह भी कहा कि इन दिशा. निर्देशों का उल्लंघन करने वाले अफसरों को विभागीय कार्रवाई के साथ अदालत की अवमानना की कार्रवाही का भी सामना करना होगा।
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