दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में कोरोना की रैपिड टेस्टिंग शुरू हो गई है। इस जांच को वैज्ञानिक बेहद अहम मान रहे हैं। इससे अगले एक सप्ताह के भीतर देश में कोरोना की वास्तविक संक्रमण की स्थिति का सटीक आकलन होने का अनुमान है। सरकार को यह समझने में भी मदद मिलेगी की कि देश में कम्युनिटी संक्रमण का खतरा है या नहीं। जांच किट मिलने में विलंब के चलते रैपिड जांच देश में देरी से शुरू हो रही है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार इस टेस्ट के जरिए उच्च जोखिम समूहों, बिना लक्षणों वाले ऐसे लोगों जो किसी कोविड रोगी के संपर्क में आए हों और सर्दी-जुकाम के लक्षणों वाले सभी लोगों की जांच की जाएगी। रैपिड टेस्ट से खतरे वाले समूहों में जांच का दायरा करीब-करीब सौ फीसदी तक हो जाएगा। इसलिए इस महीने के आखिर तक देश में कोरोना वायरस के संक्रमण की सही स्थिति सामने आ सकती है।
दरअसल, टेस्ट कम किए जाने को लेकर एक वर्ग केंद्र सरकार की लगातार आलोचना कर रहा है लेकिन सरकार का कहना है कि कोरोना वायरस के संक्रमण की दर स्थिर है।
संक्रमण की दर एक माह से स्थिर: भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. रमन गंगाखेडकर के अनुसार भारत एक पॉजिटिव नमूने पर 24टेस्ट कर रहा है जबकि अमेरिका सिर्फ पांच। दूसरे शब्दों में कहें तो रविवार को 37हजार से अधिक नमूनों की जांच की गई है और इनमें से करीब 1300नमूने ही पॉजिटिव निकले। यानि संक्रमण की दर तीन फीसदी से कुछ ही ज्यादा है। यह दर देश में पिछले एक महीने से स्थिर बनी हुई है।
आकलन करने में सुविधा होगी: वर्धमान महावीर मेडिकल कालेज के कम्युनिटी मेडिसन के निदेशक डॉ. जुगल किशोर का कहना है कि रैपिड जांच से अगले कुछ दिनों में संक्रमण के मामलों में तेजी आएगी क्योंकि बिना लक्षण वाले संक्रमित पकड़ में आएंगे। सभी संक्रमितों की जांच जरूरी इस बीमारी के फैलाव को रोकने के लिए जरूरी है कि सभी संक्रमितों की जांच हो।
इससे पहले आंकड़ा बढ़ेगा लेकिन कुछ दिनों के बाद उसमें गिरावट भी आनी शुरू हो जाएगी। दूसरे, इस जांच के बाद केंद्र सरकार को यह भी आकलन करने में सुविधा होगी कि कोरोना संक्रमण का खतरा कितना बढ़ सकता है और कम्युनिटी संक्रमण को रोकने में वह सफल हो रही है या नहीं
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