रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन को 'मैन ऑफ वर्ड्स' यूं ही नहीं कहा जाता। हालांकि, वह अब वापस एकैडमिक्स में लौट चुके हैं और छात्रों को अर्थव्यवस्था और व्यापार की बारीकियां समझा रहे हैं लेकिन अपने तीन साल के कार्यकाल में उन्होंने जिस तरह खुद को पेश किया, जो बातें कही, उनसे देशवासी, खासकर युवा, आज भी प्रेरित होते हैं।
एक नजर रघुराम राजन की कही दमदार बातों पर..
बेकर की उदारता की वजह से नहीं बल्कि उसके पैसे कमाने की चाहत की वजह से हमें हर सुबह ब्रेड नसीब होती है।
जो रिस्क नहीं लेता वह रिस्क मैनेजमेंट नहीं सीख सकता।
मैं बॉन्ड नहीं, बैंकर हूं, जो अपना काम कर रहा है।
हम ना बाज हैं ना कबूतर। हम सब असल में उल्लू हैं।
मुझे नहीं पता आप मुझे क्या कहेंगे। सांता क्लाज? मैं नहीं जानता। मैं इन चीजों से प्रभावित नहीं होता। मेरा नाम रघुराम राजन है और मेरा जो काम है, मैं वही करता हूं।
किताब का लेखक भले ही एक हो, लेकिन उसके पीछे सामूहिक मेहनत होती है।
भारतीय अर्थव्यवस्था अंधों की नगरी में काने राजा जैसी है।
हम गलत काम करने वालों को तब तक सजा नहीं देते जब तक वह छोटा और कमजोर ना हो। कोई भी अमीर और शक्तिशाली अवैध काम करनेवाले के पीछे नहीं पड़ना चाहता, इस वजह से वह और भी बड़ा हाथ मारकर बच जाते हैं।
देशों के बीच तो असमानता कम हो रही है, लेकिन देश के अन्दर बढ़ रही है। इस असमानता को दूर करने के लिए शिक्षा को सर्व सुलभ बनाना होगा।
सहनशीलता और एक-दूसरे के लिए सम्मान की भावना से समाज में संतुलन कायम होगा, जो विकास के लिए जरूरी है। भारत अहिष्णुता सहन नहीं कर सकता
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