धनबाद: आम आदमी पार्टी के प्रदेश सचिव राजन कुमार सिंह ने झारखंड हाइकोर्ट में एक याचिका दाखिल की है. दायर याचिका में उन्होंने कहा है कि 40से 50लाख से ज्यादा गरीब झारखंडियों के पास राशन कार्ड नहीं है.आंगनबाड़ी से छोटे बच्चों और महिलाओं को मिलने वाला पोषक आहार तीन माह से नहीं मिला है. एक प्रतिशत से भी कम आबादी को पका हुआ भोजन दिया जा रहा है. इससे राज्य में भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो रही है. उन्होंने बच्चों और महिलाओं को तत्काल लंबित पोषाहार देने की मांग की है.
35%परिवारों को मिला 10किलो अनाज
झारखंड सरकार ने 23मार्च को घोषणा की थी कि ऐसे परिवार जो जन वितरण प्रणाली के दायरे से बाहर हैं और जिनका राशन कार्ड का आवेदन लंबित है, उन्हें 10किलो अनाज दिया जायेगा. सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार लगभग सात लाख ऐसे परिवार हैं. उच्च न्यायालय में इस संबंध में दायर एक PIL में 27अप्रैल को सरकार ने जवाब दिया कि अभी तक ऐसे केवल 35%परिवारों को ही 10किलो अनाज दिया गया है. जिसमें जिलावार राशन उपलब्ध कराने की सूची में धनबाद जिला में केवल 20.40%लोगों राशन उपलब्ध कराया गया है. धनबाद के भी सुदूर क्षेत्रों में राशन की पहुंच लगभग नहीं के बराबर है.
पांच मई तक विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश
लॉकडाउन में भोजन के अधिकार के मुद्दे को लेकर जनहित याचिका दायर करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सह आम आदमी पार्टी के प्रदेश सचिव राजन कुमार सिंह ने पूरे मामले की विस्तृत जानकारी दी.याचिका की दूसरी सुनवाई गत 27अप्रैल को हुई. सरकार की ओर से जो जवाब दाखिल किया गया उस पर असंतुष्टि होने पर याचिकाकर्ता ने फिर से एक रीजोइंडर दाखिल किया जिसपर हाइकार्ट ने 5मई तक सरकार से विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है.
घोषणा के 21दिनों बाद भी नहीं आवंटित की गयी राशि
याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार द्वारा लंबित राशनकार्ड आवेदनकर्ताओं को 10किलो अनाज देने का सीमित निर्णय सहरानीय था. लेकिन दुःख की बात है कि यह घोषणा तक ही सीमित रह गयी. घोषणा के 21दिनों बाद इस योजना के लिए राशि आवंटित की गयी. आज तक यह स्पष्ट नहीं है कि यह राशन कहांं से मिलेगा- जन वितरण प्रणाली दुकान से, मुखिया के पास से या किसी सरकारी कर्मी से.साथ ही, इससे संबंधित सरकारी आदेश में कहा गया कि ऐसे परिवार जिनके पास राशन कार्ड नहीं है और जिन्होंने कार्ड के लिए आवेदन नहीं दिया है, उन्हें भी अनाज मिलेगा. लेकिन उन्हें पहले इस लॉकडाउन में भी ऑनलाइन आवेदन करना पड़ेगा. यह गरीबों के साथ मजाक से कम नहीं है.
1%आबादी को ही मिल पा रहा है दो वक्त का पका हुआ भोजन
सरकार के अन्य राहत योजनाओं में भी कई कमियां हैं जिसका सीधा प्रभाव लोगों के पेट पर पड़ रहा है. झारखंड सरकार द्वारा दाल-भात केन्द्रों का विस्तार एवं पंचायत स्तर पर सामुदायिक रसोई की स्थापना प्रशंसा योग्य है. लेकिन जितने लोगों को खाने की जरूरत है, उसके अनुसार यह अत्यंत सीमित है.सरकार ने कोर्ट को बताया कि पिछले 26दिनों में औसतन 3.5लाख व्यक्तियों को प्रति दिन एक वक्त का खाना खिलाया गया. मतलब साफ है कि महज एक प्रतिशत आबादी को भी राज्य में दो वक्त पका हुआ भोजन नहीं दे रही है.सरकार ने अब तक इसका भी कोई जवाब नहीं दिया कि आईसीडीएस योजना के तहत आंगनबाड़ी से छोटे बच्चों, गर्भववती-धात्री महिलाओं को मिलने वाले फरवरी-मार्च-अप्रैल माह का पोषक आहार अभी तक क्यों नहीं दिया गया.
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