देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही 18 घंटे काम को लेकर प्रतिबद्ध हों। मंत्रियों के मंत्रालय में बैठकर काम करने को शीर्ष प्राथमिकता देते हों, लेकिन झारखंड में उनकी प्रतिबद्धता का कोई असर नजर नहीं आता। कहने को तो यहां भी सप्ताह में पांच दिन मंत्रालय चलते हैं लेकिन अधिकतर मंत्री यहां मुश्किल से दो दिन ही बैठते हैं। हालांकि मंत्रियों को यह स्वतंत्रता है कि उनकी हाजिरी नहीं बनती। सो, उनके आने-जाने का भी कोई निश्चित समय नहीं रहता।
सीएम मौजूद, मंत्री नदारद
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के निर्देश के बाद मंत्रियों ने आम लोगों से मिलने के लिए सप्ताह में दो दिन का समय जरूर तय कर रखा है। ऐसे में मंत्री कम से कम दो दिन विभागों में मौजूद रहने की कोशिश करते हैं। महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि मंत्री के नियमित नहीं रहने से भले ही प्रत्यक्ष रूप से कोई काम बाधित होता नहीं दिखता, असर तो पड़ता ही है। यह हाल तब है जब स्वयं मुख्यमंत्री सप्ताह के पांचों दिन कार्यालय पहुंचते हैं और ऑफिस खुलने से लेकर देर शाम तक कामकाज निपटाते हैं, मंत्रणा करते हैं और लोगों से मिलते-जुलते भी हैं।
मंत्रियों की अनुपस्थिति से काम प्रभावित
रांची में तालाबों को ईंट और कंक्रीट की दीवार से घेराव कार्यक्रम शुरू करने के बाद पूरी योजना ही बदलनी पड़ी। बिरसा मुंडा पार्क के सौंदर्यीकरण को लेकर आधा दर्जन से अधिक योजनाएं बन चुकी हैं। कुछ पर काम शुरू हुआ और फिर वापस भी। अब तक मेट्रो रेल, मोनो रेल, सिटी बस सर्विस आदि तमाम योजनाएं फाइलों में ही सिमटी रहीं। कुछ योजनाओं पर लाखों रुपये खर्च हुए तो कुछ पर मैनपावर लगा रहा और इनके वेतन की बर्बादी हुई। तमाम बर्बादी के पीछे बड़ा कारण यह कि इन योजनाओं के शुरू करने के पूर्व जो समय देना था वह नहीं दिया गया। यही स्थिति झारखंड में तीन नए अस्पतालों के लिए सरकारी घोषणा की हुई।
नए अस्पतालों की अनुमति के लिए जब स्वास्थ्य विभाग की टीम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) के कार्यालय पहुंची तो आवेदन को सिरे से खारिज कर दिया गया। जाहिर सी बात है कि टीम आधी-अधूरी तैयारी के साथ दावेदारी करने पहुंची थी। कॉलेज भवन तक पूरे नहीं थे। जब मंत्री पांच दिन का काम दो दिन में करेंगे तो अधिकारी भी इसी ढर्रे पर योजनाओं को अमलीजामा पहनाएंगे। जाहिर है कि कई काम कंसल्टेंट कर रहे हैं। नतीजा कई बार प्रोजेक्ट को मुकाम नहीं मिल पाता।
मंत्री पूरे राज्य के लेकिन फोकस क्षेत्र पर कहने को मंत्री पूरे राज्य के हैं लेकिन ज्यादातर अपने विधानसभा क्षेत्र में ही अधिक समय देते हैं। रांची और आसपास के जिलों के मंत्री मुख्यालय में होने के बावजूद मंत्रालय में नहीं बैठते हैं। फाइलें मंत्री के घर तक पहुंच जाती हैं।
पहले तो और था बुरा हाल
सीएम रघुवर दास के शासन में नियमित तौर पर हर मंगलवार को कैबिनेट की बैठक होती है। इसके पूर्व की सरकारों में मंत्रिमंडल की बैठक का ऐसा कोई नियम नहीं था। लिहाजा कई बार 15-20 दिन में एक बार मंत्री की मौजूदगी दिखती थी।
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