बारिश का मौसम आते ही झारखंड के बाजारों में गोल-गोल मिट्टी से सना सफेद-काला रूगड़ा बिकने लगता है। हर जगह आदिवासी महिलाओं को इसे बेचते हुए देखा जा सकता है। इसे फुटका या पुटू भी कहते हैं। इसकी सब्जी जितनी स्वादिष्ट बनती है, उतनी ही अधिक यह फायदेमंद है। रूगड़ा दो प्रकार के होते हैं, सफेद और काला। सफेद रूगड़ा ज्यादा स्वादिष्ट माना जाता है। सावन आने के बाद अधिकतर लोग शाकाहारी भोजन करते हैं, उस समय यह मीट-चिकन की कमी पूरी करता है। तभी इसे शाकाहारी मटन भी कहा जाता है।
सिर्फ रंग-रूप में ही नहीं गुणों में भी यह मशरूम के समान है। इसमें कई पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं। उच्च कोटि के प्रोटीन के साथ कई प्रकार के विटामिंस, जैसे विटामिन-सी, विटामिन डी, विटामिन-बी कांप्लेक्स, राइबोलेनिन, थाइमिन, विटामिन बी 12, फोलिक एसिड और लवण, कैल्शियम, फास्फोरस, पोटैशियम एवं तांबा पाए जाते हैं। इसमें कैलोरी कम और प्रोटीन भरपूर होता है, इस कारण यह मधुमेह रोगियों और हार्ट पेशेंट के लिए उत्तम आहार है। यह खाने में स्वादिष्ट होने के साथ ही सुपाच्य भी होता है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ कब्ज को दूर करता है। हाई ब्लड प्रेशर और हाइपरटेंशन के रोगियों के लिए उपयुक्त है। इसमें वसा काफी कम होता है, जिसके कारण यह मोटापा घटाने के इच्छुक लोगों के लिए उपयुक्त होता है।
रूगड़ा मशरूम की प्रजाति का ही है। वैसे तो देश के कई भागों में यह पाया जाता है, लेकिन झारखंड में सबसे अधिक मात्रा मे पाया जाता है। झारखंड में यह सखुआ के वृक्ष के आसपास अधिक पाया जाता है। यह वहीं उगता है, जहां सखुआ वृक्ष की पत्तियां गिर कर सड़ती हैं। आदिवासियों में ऐसा मान्यता है कि बारिश जितनी ज्यादा होगी, रूगड़ा उतना ही अधिक निकलेगा। यह भी माना जाता है कि बादल जितना कड़केगा, रूगड़ा उतना ही निकलेगा।
ऐसे बनाएं सब्जी
पहले रूगड़ा को कई बार रगड़कर पानी में अच्छी तरह साफ कर लें, ताकि इसमें लगी मिट्टी पूरी तरह से साफ हो जाए। प्याज को सुनहरा होने तक भून लें। फिर इसमें टमाटर काटकर डालें। हल्दी, जीरा, धनिया, अदरक, लहसुन का पेस्ट डाल कर तेल छोड़ने तक भून लें। मसाला मीट की तरह रिच होना चाहिए। फिर इसमें रूगड़ा मिलाकर अच्छी तरह नरम होने तक भूनें। आवश्यकतानुसार नमक और पानी मिलाकर 10-15 मिनट पकाएं। गर्म चावल या रोटी के साथ खाएं, लेकिन इसका असली स्वाद झारखंडी छिलका रोटी के साथ ही आता है।
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