रिम्स ही नहीं, पूरे राज्य में प्रसव पूर्व जांच से लेकर प्रसव तक और एक साल के नवजात का इलाज पूरी तरह मुफ्त है। उसको अस्पताल लाने और ले जाने की भी सरकार मुफ्त व्यवस्था करती है। संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए प्रसूता को प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है। यह व्यवस्था रिम्स में भी है। लेकिन कागजों से यह पूरी तरह नीचे नहीं उतर पाई है। बानगी शनिवार को रिम्स के ओपीडी में देखने को मिली। बसंतपुर सिल्ली के भोलानाथ कोईरी ने बताया कि रिम्स के गायनी वार्ड के बाहर लिखा है कि किसी को पैसा न दें। लेकिन यहां हर कदम पर पैसा लगता है। उन्होंने बताया कि शुक्रवार को उनका बेटा हुआ है। लेबर रूम में सिस्टर ने चाय पानी के लिए 500 रुपए मांगे। काफी कहने के बावजूद उसने 250 रुपए ले लिए। उसके बाद ही बच्चा को बाहर आने दिया। बाहर निकलने से पहले वहां खड़ी सुरक्षा गार्ड (जो दवा अंदर लेबर रूम में दे आती है) ने भी जबरदस्ती 150 रुपए लिए। वह तो 300 रुपए से कम लेने को राजी ही नहीं थी। बात यहीं पर नहीं थमी। शनिवार को जब बच्चे को टीका दिलाने ओपीडी आए तो रजिस्ट्रेशन काउंटर पर उससे पांच रुपए लिए गए। जबकि पर्ची पर शुन्य लिखा है।
मुफ्त की पर्ची के लगते हैं पांच रुपए
रिम्स ओपीडी में शनिवार को बच्चों को टीका दिलवाने आए दर्जनों लोगों ने बताया कि उनसे पांच रुपए लिए गए हैं। सिल्ली की चालो देवी ने बताया कि उसकी पर्ची (क्रम संख्या 272844) पर भी शुन्य लिखा गया है। लेकिन उससे पांच रुपए लिए गए। मोरहाबादी के नुनू मंडल की भी यही शिकायत थी। मोरहाबादी की ही सोनालिका तिर्की ने बताया कि उसने रजिस्ट्रेशन काउंटर पर कहा भी कि टीका की पर्ची का पैसा नहीं लगता है, लेकिन काउंटर पर बैठा आदमी ने पांच रुपए ले लिए।
डिप्टी डायरेक्टर से शिकायत
मामले की शिकायत जब रिम्स के डिप्टी डायरेक्टर गिरिजा शंकर प्रसाद से की गई तो उन्होंने इसे गंभीरता से लिया। अविलंब वह शिशु वार्ड पहुंचे और लोगों से पूछताछ की। कुछ लोगों को लेकर वह काउंटर पर पहुंचे और कर्मियों को डांट फटकार लगाते हुए लिए गए रुपए वापस दिलाए।
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