रांची। राष्ट्रपति ने झारखंड भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक (भूमि अर्जन, पुनर्वासन एवं पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार कानून 2013) को मंजूरी दे दी है। अगस्त 2017 में राज्य मंत्रिपरिषद ने इसे हरी झंडी दी थी। इसके बाद विपक्ष के भारी हो-हंगामे के बीच यह विधानसभा से पारित हुआ था। प्रक्रिया के तहत कृषि और गृह मंत्रालय से होते हुए यह विधेयक राष्ट्रपति तक पहुंचा था, जिसमें कुछ आपत्तियों के बाद इसे लौटा दिया गया था। आपत्ति कृषि भूमि के उपयोग को लेकर थी। सरकार ने इसे संशोधित कर पुन: राष्ट्रपति को भेजा था। विधेयक पर राष्ट्रपति की मुहर लग जाने के बाद अब विकास योजनाओं में सामाजिक प्रभावों के मूल्यांकन की बाध्यता खत्म हो जाएगी। इससे इतर कुछ खास उद्देश्यों से ही सरकार जमीन का अधिग्रहण हो सकेगा। भू-अधिग्रहण की सारी प्रक्रिया ग्रामसभा के माध्यम से संचालित होगी कृषि भूमि के अधिग्रहण पर आपत्ति भू-अधिग्रहण के दौरान कृषि भूमि के अधिग्रहण पर केंद्र सरकार की आपत्ति बरकरार रही और संशोधित बिल में इस भूमि के अधिग्रहण की मंजूरी नहीं दी गई। गत वर्ष दिसंबर माह में इसी आपत्ति के साथ बिल वापस किया गया था। स्पष्ट कहा गया था कि कृषि भूमि की गैर कृषि कार्य के लिए सहमति नहीं दी जा सकती।
भारत सरकार ने कृषि भूमि के संरक्षण की वकालत की थी। हालांकि राज्य सरकार ने बिल को दोबारा इस तर्क के साथ भेजा था कि बहुफसलीय सिंचित क्षेत्र की दो प्रतिशत से अधिक जमीन अर्जित नहीं की जाएगी। किसी भी जिले में कुल शुद्ध बोया क्षेत्र का एक चौथाई से अधिक अधिग्रहण नहीं किया जाएगा। इन उद्देश्यों के लिए सरकार अधिग्रहित करेगी भूमि भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन के बाद सिर्फ विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, अस्पताल, पंचायत भवन, आंगनबाड़ी केंद्र, रेल, सड़क, जलमार्ग, विद्युतीकरण, सिंचाई, जलापूर्ति पाइपलाइन, ट्रांसमिशन लाइन तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए बनाई जानेवाली आवासीय इकाइयों के निर्माण के लिए भूमि का अधिग्रहण सरकार करेगी।
गरीबों की जमीन पर नजर : कांग्रेस
कांग्रेस ने कहा कि सरकार का मंसूबा गलत है। उसकी नजर मेहनतकश अवाम की जमीन पर है। प्रदेश मीडिया प्रभारी राजेश ठाकुर के मुताबिक भाजपा की कथनी-करनी में अंतर है। जब सीएम सीएनटी, एसपीटी एक्ट में संशोधन नहीं करा पाए तो उन्होंने अंबानी-अडानी समेत अन्य कारपोरेट घरानों को सस्ते दर पर जमीन देने के लिए दूसरा तरीका अपनाया।
आजसू ने बताया गलत
आजसू प्रवक्ता देवशरण भगत ने इसे जन भावनाओं के विरुद्ध उठाया गया कदम बताया। कहा कि इस कानून में संशोधन होने से कृषि भूमि का उपयोग गैर कृषि कार्यों में भी होने लगेगा। यह पंचायती राज व्यवस्था, पेसा कानून और पांचवीं अनुसूची के भी विरुद्ध है।
इन राज्यों ने किया है संशोधन
गुजरात, गोवा, तेलंगाना आदि राज्यों ने वहां की जरूरतों के हिसाब से कानून में संशोधन किया है।
होगा पुरजोर विरोध : बाबूलाल
झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने कहा कि अंतत: भूमि संशोधन कानून पर राष्ट्रपति की मुहर लग गई। झाविमो पूर्व में भी इसका विरोध करता रहा है, आगे भी करता रहेगा। उन्होंने सरकार पर आरोप मढ़ा कि
सरकार का यह कृत्य कारपोरेट घरानों का हित साधने वाला है। सरकार बिना ग्रामसभा की मर्जी के भूमि अधिग्रहण करेगी। अधिग्रहण का समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन तक नहीं हो सकेगा।
क्या है विधेयक में
झारखंड में अब सरकारी योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण छह माह में हो पाएगा। अभी सरकारी योजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण में दो से तीन साल का समय लगता है।
इस संशोधन के बाद सरकारी योजनाओं में रैयतों को भूमि के एवज में चार गुना मुआवजे का भुगतान आठ माह में हो सकेगा। इसमें अब तक दो से तीन साल तक का समय लगता था।
सरकारी योजनाओं के लिए भू-अर्जन में सामाजिक प्रभाव के आकलन को समाप्त कर ग्राम सभा या स्थानीय प्राधिकार का परामर्श प्राप्त करने का प्रावधान किया गया है। जिससे लोगों की सहभागिता बनी रहेगी।
निजी उपयोग या उद्योग के लिए जमीन लेने पर इस संशोधन का लाभ नहीं मिलेगा।
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