(समय न्यूज़ 24 डेस्क)
जेष्ठ मास की अमावस्या या पूर्णिमा तिथि को वट सावित्री व्रत किया जाता है। जेष्ठ मास शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक होता है यह दक्षिणीमत है। देश के अधिकतर भागों में दूसरेमत के अनुसार सौभाग्यवती स्त्रियां जेष्ठ मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से अमावस्या तक या केवल अमावस्या तिथि को ही वट सावित्री का व्रत एवं पूजन वटवृक्ष के नीचे करती है।
वट वृक्ष की पूजा क्यों
पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री मृत पति सत्यवान को वटवृक्ष के नीचे लिटा दी जहां यमराज ने प्राण हरण किया यमराज एवं पति के प्राण का अनुसरण करते हुए पतिव्रता सावित्री भी जल्दी सावित्री की प्रार्थना पति भक्ति सेवा भाव दृढ़ निश्चय एवं बुद्धि मानता पूर्ण निर्णय से यमराज को प्रसन्न कर उसके विधान को बदलाव कर अपने पति के प्राण वापस लिया पुनः उसी वटवृक्ष के नीचे पढ़ें सत्यवान के निर्जीव शरीर में प्राण का संचार सावित्री द्वारा वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर हुआ इसलिए बरगद पेड़ की पूजा व परिक्रमा की जाती है। यदि वटवृक्ष ना मिले तो गमले में लगे वट वृक्ष की पूजा की जाती है ऐसा भी वट वृक्ष की पूजा स्वास्थ्य प्रदा मानी गई है।
निरसा विधानसभा क्षेत्रों में महिलाओं ने पति की दीर्घायु के लिए निर्जला व्रत रखकर वट सावित्री की पूजा अर्चना की और अपने पति की दीर्घायु की कामना की ऐसा मान मान्यता है कि वट वृक्ष ब्रह्मांड तने में विष्णु व इसकी डालियां व पत्ते में शिव का वास होता है। महिलाएं उपवास रखकर वट वृक्ष की पूजा करती है सावित्री कथा सुनती है। कहते हैं कि इस कथा के सुनने से अखंड सौभाग्यवती वर की प्राप्ति होती है निरसा चिरकुंडा स्थित वटवृक्ष के पास सुहागिनी ने विधि विधान के साथ वटवृक्ष सावित्री पूजा की सुहागिनी सोलह सिंगार कर दिन भर कठिन व्रत रखा और अपने पति की लंबी आयु की कामना की।
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